Present trend in medical field…
यह कोई मज़ाक नहीं है…🙏
पढ़ें और यदि अच्छा लगे तो दूसरों को भी पढ़ने का अवसर दें!!
!!!!! अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था !!!!!
डॉ. अनन्या सरकार
दो-तीन दिन बुखार रहा, दवा न लेते तो भी ठीक हो जाते, शरीर अपने आप कुछ दिनों में ठीक हो जाता। लेकिन आप डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर साहब ने शुरुआत में ही ढेर सारे टेस्ट लिख दिए। टेस्ट रिपोर्ट में बुखार का कोई खास कारण तो नहीं मिला, लेकिन कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर थोड़े से बढ़े हुए पाए गए, जो सामान्य इंसानों में थोड़ा बहुत ऊपर-नीचे होना आम बात है।
बुखार तो चला गया, लेकिन अब आप बुखार के मरीज नहीं रहे। डॉक्टर साहब ने बताया — आपका कोलेस्ट्रॉल ज़्यादा है और शुगर थोड़ी अधिक है, यानी आप ‘प्री-डायबेटिक’ हैं। अब आपको कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए दवाएं लेनी होंगी। साथ ही खाने-पीने में बहुत सारी पाबंदियाँ लगा दी गईं। आपने खाने में पाबंदियाँ भले न मानी हों, लेकिन दवाएं लेना नहीं भूले।
ऐसे तीन महीने बीते। फिर टेस्ट कराया गया। कोलेस्ट्रॉल कुछ कम हुआ, लेकिन अब ब्लड प्रेशर थोड़ा बढ़ा हुआ पाया गया। उसे कंट्रोल करने के लिए एक और दवा दी गई। अब आपकी दवाओं की संख्या हो गई 3।
इतनी बात सुनने के बाद आपकी चिंता बढ़ने लगी। “अब क्या होगा?” — इसी चिंता में आपकी नींद उड़ने लगी। डॉक्टर ने नींद की दवा भी शुरू कर दी। अब दवाओं की संख्या 4 हो गई।
इतनी सारी दवाएं खाते ही अब आपको पेट में जलन शुरू हो गई। डॉक्टर बोले — खाने से पहले एक गैस की टैबलेट खाली पेट लेना होगा। दवाओं की संख्या बढ़कर 5 हो गई।
ऐसे ही छह महीने बीत गए। एक दिन सीने में दर्द हुआ तो आप भागे अस्पताल की इमरजेंसी में। डॉक्टर ने सब चेकअप करके कहा — “समय पर आ गए, नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता था।” फिर कुछ विशेष जाँचों की सलाह दी गई।
कई महंगे टेस्ट के बाद डॉक्टर बोले — “पुरानी दवाएं तो चलती रहेंगी, अब हार्ट की दो दवाएं और जुड़ेंगी। साथ ही आपको एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (हार्मोन विशेषज्ञ) से भी मिलना होगा।” अब आपकी दवाओं की संख्या हो गई 7।
हार्ट स्पेशलिस्ट के कहने पर आप एंडोक्रिनोलॉजिस्ट के पास गए। उन्होंने शुगर के लिए एक और दवा और थायरॉइड थोड़ा बढ़ा होने पर एक और दवा जोड़ दी।
अब आपकी कुल दवाएं हो गईं 9।
अब आप अपने मन में यह मानने लगे कि आप बहुत बीमार हैं — हार्ट के मरीज, शुगर के मरीज, अनिद्रा के मरीज, गैस के मरीज, थायरॉइड के मरीज, किडनी के मरीज, आदि-आदि।
आपको यह नहीं बताया गया कि आप अपनी इच्छाशक्ति, आत्मबल और जीवनशैली सुधार कर स्वस्थ रह सकते हैं। बल्कि आपको बार-बार यह बताया गया कि आप एक “गंभीर रोगी” हैं, निर्बल हैं, असमर्थ हैं, एक टूटे हुए व्यक्ति हैं!
ऐसे ही और छह महीने बीतने के बाद दवाओं के साइड इफेक्ट से आपको पेशाब की कुछ समस्याएं हुईं। फिर रूटीन चेकअप में पता चला कि आपकी किडनी में भी कुछ समस्या है। डॉक्टर ने फिर कई टेस्ट करवाए।
रिपोर्ट देखकर डॉक्टर बोले — “क्रिएटिनिन थोड़ा बढ़ा हुआ है, लेकिन दवाएं नियमित चलती रहीं तो चिंता की बात नहीं।” और दो दवाएं और जोड़ दी गईं।
अब आपकी कुल दवाओं की संख्या हो गई 11।
अब आप भोजन से ज्यादा दवा खा रहे हैं, और दवाओं के अनेक दुष्प्रभावों से आप धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं!!
जबकि जिस बुखार की वजह से आप सबसे पहले डॉक्टर के पास गए थे, अगर डॉक्टर साहब कहते:
“चिंता की कोई बात नहीं। यह मामूली बुखार है, कोई दवा लेने की ज़रूरत नहीं। कुछ दिन आराम कीजिए, भरपूर पानी पिएं, ताजे फल-सब्जियाँ खाएँ, सुबह टहलने जाइए — बस, इतना ही काफी है। दवा की ज़रूरत नहीं।”
तो फिर डॉक्टर साहब और दवा कंपनियों का पेट कैसे भरता❓
और सबसे बड़ा सवाल: किस आधार पर डॉक्टर मरीजों को कोलेस्ट्रॉल, हाई बीपी, डायबिटीज, हार्ट डिज़ीज और किडनी डिज़ीज़ घोषित कर रहे हैं❓❓❓
ये मानदंड कौन तय करता है❓
आइए, थोड़ा विस्तार से जानें —
★ 1979 में जब ब्लड शुगर 200 mg/dl से ऊपर होता था, तभी व्यक्ति को डायबिटिक माना जाता था। उस समय दुनिया की सिर्फ 3.5% आबादी को टाइप-2 डायबिटिक माना जाता था।
★ 1997 में इंसुलिन बनाने वाली कंपनियों के दबाव में यह स्तर घटाकर 126 mg/dl कर दिया गया। इससे डायबिटिक मरीजों की संख्या 3.5% से बढ़कर 8% हो गई — यानी बिना किसी लक्षण के 4.5% और लोग रोगी बना दिए गए! 1999 में WHO ने भी इस पैमाने को मान लिया।
इंसुलिन कंपनियों ने जबरदस्त मुनाफा कमाया और नई फैक्ट्रियाँ खोलीं।
★ 2003 में ADA (American Diabetes Association) ने फास्टिंग ब्लड शुगर 100 mg/dl को डायबिटीज का मानक घोषित किया। इसके चलते बिना कारण 27% लोग डायबेटिक रोगी घोषित कर दिए गए।
★ अब ADA के अनुसार पोस्ट प्रांडियल (भोजन के बाद) 140 mg/dl को डायबिटीज का संकेत माना जाता है। इससे दुनिया की लगभग 50% आबादी डायबेटिक घोषित हो चुकी है — जबकि इनमें से कई वास्तविक मरीज नहीं हैं।
भारतीय दवा कंपनियाँ इसे और नीचे, 5.5% HbA1c पर लाने की कोशिश कर रही हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मरीज बन जाएँ और दवा बिके।
जबकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि HbA1c 11% तक डायबिटीज नहीं मानी जानी चाहिए।
एक और उदाहरण:
2012 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रसिद्ध दवा कंपनी पर $3 बिलियन का जुर्माना लगाया। आरोप था कि उनकी डायबिटीज की दवा से 2007–2012 के बीच हार्ट अटैक के कारण मरीजों की मृत्यु दर 43% बढ़ गई थी।
कंपनी को यह पहले से पता था, लेकिन उन्होंने मुनाफे के लिए जानबूझकर इसे छुपाया। इसी अवधि में उन्होंने 300 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया।
यही है आज की ‘अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था’!!
सोचिए… और सोचना शुरू कीजिए.
निश्चित रूप से संग्रहित
सभी स्वस्थ रहें, खुश रहे
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