कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास

कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास

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कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास
कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास

कोलकाता, जिसे पहले कलकत्ता कहा जाता था, भारत के पूर्वी हिस्से का एक प्रमुख शहर है। कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास, संस्कृति, और राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय को संजोए हुए है। गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित यह शहर, देश के आधुनिक बौद्धिक और सांस्कृतिक आंदोलनों का केंद्र रहा है। कोलकाता का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है, और इसमें ब्रिटिश उपनिवेशवाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, और समकालीन विकास शामिल हैं।

प्रारंभिक इतिहास:

कोलकाता का उल्लेख प्राचीन काल से ही मिलता है। यह क्षेत्र कभी ‘गौर’ और ‘सप्तग्राम’ के रूप में जाना जाता था। कहा जाता है कि कोलकाता का नाम तीन गांवों – कोलीकाता, सुतानुटी, और गोविंदपुर – से लिया गया है। 17वीं शताब्दी तक यह क्षेत्र स्थानीय जमींदारों के अधीन था, लेकिन व्यापारिक कारणों से अंग्रेजों की नज़र इस क्षेत्र पर पड़ी।

ब्रिटिश शासन और कलकत्ता का उदय:

1690 में, ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अंग्रेज व्यापारी जॉब चार्नोक ने कलकत्ता की नींव रखी। यह वह समय था जब अंग्रेज इस क्षेत्र में अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित करने लगे थे। 1698 में, अंग्रेजों ने मुग़ल सम्राट से कलकत्ता के अधिकार खरीद लिए और यहां एक किला (फोर्ट विलियम) बनाया, जो व्यापार और सैन्य गतिविधियों का मुख्य केंद्र बन गया।

18वीं शताब्दी के मध्य तक कलकत्ता ब्रिटिश भारत की राजधानी बन चुका था। 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद, अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया, और कलकत्ता उनके प्रशासन का केंद्र बन गया। शहर ने तेजी से व्यापारिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक प्रगति की। ब्रिटिश शासन के दौरान ही शहर में कई भव्य भवनों का निर्माण हुआ, जिनमें विक्टोरिया मेमोरियल, हावड़ा ब्रिज, और इंडियन म्यूज़ियम प्रमुख हैं।

कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास
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बौद्धिक पुनर्जागरण और स्वतंत्रता संग्राम:

19वीं शताब्दी में, कलकत्ता भारत के बौद्धिक पुनर्जागरण का केंद्र बन गया। यह शहर शिक्षा, साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी बन गया। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, और स्वामी विवेकानंद जैसी हस्तियों ने समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कलकत्ता स्वतंत्रता संग्राम का भी महत्वपूर्ण केंद्र रहा। यहां के क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। सुभाष चंद्र बोस, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं में से एक थे, का संबंध इसी शहर से था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में यहां कांग्रेस के कई सत्र आयोजित हुए, और बंगाल विभाजन के विरोध में व्यापक आंदोलन हुए।

स्वतंत्रता के बाद का कोलकाता:

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोलकाता पश्चिम बंगाल की राजधानी बना। विभाजन के कारण शहर में शरणार्थियों की बड़ी संख्या में आवक हुई, जिससे शहर की जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई। इसके बाद के दशकों में कोलकाता को सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन इस दौरान भी यह शहर भारत की सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र बना रहा।

समकालीन कोलकाता:

आज का कोलकाता एक ऐसा शहर है जो अपनी ऐतिहासिक विरासत और आधुनिकता का संगम है। यह शहर साहित्य, कला, संगीत, सिनेमा, और खेल के क्षेत्र में अपनी प्रमुखता बनाए हुए है। कोलकाता में दुर्गा पूजा विशेष रूप से विख्यात है, जो न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी मनाई जाती है।

कोलकाता की सड़कों पर आज भी ब्रिटिश काल की छाप देखी जा सकती है। विक्टोरियन शैली की इमारतें, ट्राम, और गंगा के किनारे की खूबसूरत सड़कें इस शहर की विशेषता हैं। कोलकाता का हावड़ा ब्रिज, विक्टोरिया मेमोरियल, और इंडियन म्यूज़ियम जैसे स्थल आज भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

जॉब चार्नोक और कलकत्ता की नींव (1690)

जॉब चार्नोक का नाम कोलकाता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 1690 में, ईस्ट इंडिया कंपनी के इस अंग्रेज व्यापारी ने कलकत्ता की नींव रखी। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि चार्नोक कोलकाता के संस्थापक थे या नहीं, लेकिन उन्हें इस शहर की स्थापना का श्रेय दिया जाता है।

ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन

ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा स्थापित की गई थी। इसका उद्देश्य भारत और पूर्वी एशिया के साथ व्यापार करना था। 17वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेज भारत के पूर्वी भाग, विशेषकर बंगाल में अपने व्यापार को मजबूत करने के उद्देश्य से आए। 1686 में, जब अंग्रेजों और बंगाल के नवाबों के बीच संघर्ष हुआ, तो अंग्रेजों ने व्यापारिक केंद्र बनाने के लिए एक नए स्थान की खोज शुरू की। इस दौरान जॉब चार्नोक ने कलकत्ता क्षेत्र को चुना, जहां तीन छोटे गांव — सुतानुटी, कोलीकाता और गोविंदपुर स्थित थे।

कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास
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जॉब चार्नोक और कलकत्ता का चयन

जॉब चार्नोक ने 24 अगस्त, 1690 को इन तीन गांवों को व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित किया। उन्होंने इस क्षेत्र को रणनीतिक और भौगोलिक दृष्टि से उपयुक्त पाया क्योंकि यह गंगा नदी के किनारे स्थित था, जो व्यापार और यातायात के लिए महत्वपूर्ण था। गंगा नदी का किनारा जहाजों के आवागमन के लिए सुविधाजनक था, और यहां से अंग्रेजों को व्यापारिक लाभ आसानी से मिल सकता था। इसके अलावा, यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं से अपेक्षाकृत सुरक्षित था, और अंग्रेजों को यहां से अन्य यूरोपीय व्यापारियों के मुकाबले व्यापार करने में सुविधा मिली।

1698 में मुग़ल सम्राट से अधिकारों की खरीदारी

1698 में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुग़ल सम्राट और स्थानीय ज़मिंदारों से कोलकाता के अधिकार खरीदे। यह कदम ब्रिटिशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि इससे उन्हें इस क्षेत्र में व्यापार और सैन्य नियंत्रण मिला। इसके बाद, ब्रिटिशों ने यहाँ एक किला बनाने की शुरुआत की, जिसे फोर्ट विलियम कहा जाता है।

फोर्ट विलियम का निर्माण न केवल व्यापार को सुरक्षित रखने के लिए था, बल्कि यह सैन्य गतिविधियों का भी केंद्र बन गया। किला एक प्रमुख रक्षा ढांचा था, जो अंग्रेजों को बंगाल में अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद करता था। यह किला ब्रिटिश शासन का प्रतीक बना और कलकत्ता को एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित करने में सहायक हुआ।

कलकत्ता का प्रारंभिक विकास

किले के निर्माण के साथ ही अंग्रेजों ने धीरे-धीरे कलकत्ता में अपना व्यापारिक और प्रशासनिक नियंत्रण मजबूत किया। फोर्ट विलियम के आसपास का इलाका तेजी से विकसित होने लगा। अंग्रेजों ने यहां अपने प्रशासनिक भवन, चर्च, और व्यापारिक केंद्रों का निर्माण किया। इससे कलकत्ता एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और आर्थिक केंद्र बन गया।

1690 से लेकर 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक, कलकत्ता ब्रिटिश भारत का एक प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह बन गया। इस दौरान यूरोप से कई व्यापारी और उपनिवेशवादी यहां आए, जिससे शहर की जनसंख्या और आर्थिक महत्व में तेजी से वृद्धि हुई।

कोलकाता (कलकत्ता) का ऐतिहासिक इतिहास
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निष्कर्ष

जॉब चार्नोक के आगमन के बाद कलकत्ता का विकास तेजी से हुआ। यह शहर न केवल एक व्यापारिक केंद्र बना, बल्कि ब्रिटिश शासन के अधीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में से एक बन गया। जॉब चार्नोक द्वारा 1690 में की गई इस स्थापना ने भविष्य में कलकत्ता को भारतीय इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया।

इस प्रकार, कलकत्ता की नींव ब्रिटिश शासन के प्रारंभिक दौर और भारत में उनके विस्तार की कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

कोलकाता न केवल एक शहर है, बल्कि यह भारत के इतिहास, संस्कृति, और बौद्धिकता का प्रतीक है। यह शहर ब्रिटिश उपनिवेशवाद की विरासत से लेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तक, और आधुनिक भारत के विकास तक की यात्रा का गवाह रहा है। कोलकाता की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और इसके लोगों की ऊर्जा इसे भारत के सबसे विशिष्ट शहरों में से एक बनाती है।


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