अर्धनग्न होकर अनशनकारियों का विरोध प्रदर्शन
भूख हड़ताल के सातवें दिन अर्धनग्न होकर अनशनकारियों का विरोध प्रदर्शन

मिर्जापुर: दिनांक 08/09/2024 को भूख हड़ताल के सातवें दिन भी अनशन पर बैठे लोगों से मिलने या उनकी समस्याओं पर चर्चा करने के लिए प्रशासन का कोई भी अधिकारी नहीं पहुँचा। शासन की उपेक्षा से आहत होकर, अनशनकारियों ने अर्धनग्न होकर अपना विरोध दर्ज करायाऔर इस घटना ने समाज में गहरी चर्चा का विषय बना दिया है। अनशनकारियों का कहना है कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और सरकार की अनदेखी उन्हें और ज्यादा मजबूर कर रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर प्रशासन ने जल्द ही उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया, तो वे अपने अनशन को और तेज करेंगे।
लोगों का गुस्सा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।
गर्मी और परेशानियों के बीच भी, इनमें से किसी ने भी अपने इरादों में कमी नहीं की है। स्थानीय लोगों ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया है और सड़क किनारे मोर्चा लगाकर अनशनकारियों के प्रति अपनी एकजुटता दिखाई है।
इनकी मांगों में मूलभूत सुविधाओं की बहाली, न्यायिक प्रक्रिया में सुधार और स्थानीय विकास कार्यों का शीघ्र प्रारंभ शामिल है। उनकी स्थिति अब मीडिया में भी चर्चा का विषय बन गई है, जहां कई पत्रकारों ने मौके पर पहुँचकर अनशनकारियों की आवाज को उठाने का प्रयास किया है।
यदि प्रशासन अब भी निष्क्रिय रहता है, तो यह आंदोलन और तेज हो सकता है, जिससे इलाके में हालात और भी खराब हो सकते हैं। स्थानीय नेता भी इस मुद्दे पर बोलने के लिए मैदान में उतर आए हैं, और उन्होंने शासन को चेतावनी दी है कि अगर यह मामला जल्द सुलझ नहीं गया, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।।
इस बीच, न तो नगर के विधायक और न ही जिले की सांसद ने अब तक अनशन स्थल पर पहुँचकर स्थिति की जानकारी ली है। अनशन का नेतृत्व कर रहे हरिश्चंद्र केवट ने कहा, “शासन और प्रशासन की निष्क्रियता से यह स्पष्ट है कि जब तक अनशनकारी मौत के कगार पर नहीं पहुँचेंगे, तब तक उनकी कोई सुध नहीं ली जाएगी।”
जिला अध्यक्ष जितेंद्र पटेल भी अनशनकारियों का समर्थन किया
इस विरोध प्रदर्शन में भदोही से अपना दल के जिला अध्यक्ष जितेंद्र पटेल भी शामिल हुए और उन्होंने अनशनकारियों का समर्थन किया। उन्होंने सरकार की ठेका प्रथा को लेकर सवाल उठाते हुए कहा, “सरकार की सबसे बड़ी विफलता ठेका प्रथा है, जिसने लोगों की रोज़ी-रोटी छीन ली है। मिर्जापुर में श्मशान घाट का ठेका यह दिखाता है कि अब सरकार ने गरीबों को भी आर्थिक वर्ग में डाल दिया है।
““जीतेंद्र पटेल ने आगे कहा, ‘सरकार को चाहिए कि वह ठेका प्रथा को समाप्त करे और लोगों को स्थायी रोजगार प्रदान करे। जब तक यहsystem जारी रहेगा, तब तक गरीबों की आवाज़ भी दबती रहेगी। मिर्जापुर के लोग आज ठेका प्रथा के कारण परेशान हैं, उन्हें अपने अपनों के अंतिम संस्कार के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। यह अत्यंत दुखद है कि एक संवेदनशील मुद्दे का आर्थिककरण किया गया है।’
सरकार की सबसे बड़ी विफलता ठेका प्रथा
सरकार के नीतियों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, ‘जनता ने हमें वोट देकर जिस उम्मीद के साथ चुनाव में उतारा था, वह उम्मीद अब ठंडी पड़ती जा रही है। हमें एकजुट होकर इसका विरोध करना होगा। इस मामले में केवल प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाने की भी ज़रूरत है।’
इस दौरान अनशनकारियों ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए यह सिर्फ एक नौकरी का मुद्दा नहीं बल्कि सम्मान और गरिमा का सवाल है। हम अपने हक के लिए लड़ेंगे और तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हमारी आवाज़ सरकार तक नहीं पहुँचती।’
जितेंद्र पटेल ने अर्धनग्न होकर अनशनकारियों का विरोध प्रदर्शन को सरकार के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा और उन्होंने सभी से अपील की कि वे इस मुद्दे पर जागरूक रहें और एकजुट होकर आगे बढ़ें। उनका मानना है कि सरकार को जनता के सामने जवाबदेह होना होगा।”
जनमुक्ति परिषद के सदस्य सौरभ ने भी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया
वहीं, जनमुक्ति परिषद के सदस्य सौरभ ने भी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया और कहा कि यह ठेका समाज के उस वर्ग का काम छीनने का प्रयास है, जो पीढ़ियों से यह कार्य करता आ रहा था। उन्होंने इस ठेके को सरकार और पूंजीपतियों का गठजोड़ बताया और इसे निरस्त करने की मांग की।सौरभ ने आगे जोर दिया कि इस ठेके के जरिए न केवल स्थानीय लोगों की जीविका पर खतरा मंडरा रहा है, बल्कि यह समाज में असमानता को बढ़ावा देने का कार्य भी कर रहा है। उन्होंने कहा, “अगर यह ठेका आगे बढ़ता है, तो हम न केवल अपने पारंपरिक काम को खो देंगे, बल्कि हमारे सामाजिक ढांचे में भी व्यापक परिवर्तन आएगा।”
विरोध प्रदर्शन में शामिल अन्य सदस्यों ने भी इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाई। एक महिला सदस्य ने कहा, “हम प्राचीन कल से इस काम को करते आ रहे हैं और हमें इसे बरकरार रखने का अधिकार है। यह ठेका हमारे हक को छीनने का फरमान है।”
मौजूद सभी लोग एकजुट होकर नारे लगाने लगे, “हकदार हैं हम, ठेका नहीं चाहिए!” सौरभ ने आश्वासन दिया कि वह और उनका संगठन इस लड़ाई में पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने मीडिया से भी अपील की कि वह इस विषय को प्रमुखता से उठाए ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
“हम चुप नहीं बैठेंगे,” सौरभ ने अंतिम शब्दों में कहा। “यह केवल एक ठेका नहीं, हमारी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक सुरक्षा का मामला है। हम इसे हर हाल में रोकने का प्रयास करेंगे।”

आंदोलन और बड़ा रूप लेगा, जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ प्रशासन होगा।
हरिश्चंद्र केवट ने अंत में कहा, “अगर प्रशासन इसी तरह मूकदर्शक बना रहा, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप लेगा और इसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ प्रशासन होगा।”“इसलिए, हमें एक प्रभावी संवाद की आवश्यकता है, जहां जनता की आवाज़ सुनी जाए और उनके मुद्दों का समाधान किया जाए। प्रशासन को चाहिए कि वह अपनी आँखें बंद न करे और न ही इस संकट को नजरअंदाज करे।
अगर वह ऐसा करेगा, तो आने वाले दिनों में न केवल आंदोलन तेज होगा, बल्कि समाज में असंतोष भी बढ़ेगा। हमारी अपेक्षा है कि सरकार स्थिति की गंभीरता को समझे और हमारी मांगों को समझने के लिए तत्पर रहे। संवाद और सहयोग से ही इस समस्या को हल किया जा सकता है।”
(हरिश्चंद्र केवट समाज सेवक- संपर्क: 9555744251)
हरिश्चंद्र केवट समाज सेवक, जो समाज के उत्थान और जागरूकता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। उनका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में लोगों को जागरूक करना है। वे नियमित रूप से विभिन्न संगठनों और ग्रुप्स के साथ मिलकर समाज में बदलाव लाने के लिए कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित करते हैं।
उनका मानना है कि जागरूकता और शिक्षा ही बदलाव की कुंजी है। हरिश्चंद्र जी ने कई बार ग्रामीण इलाकों में जाकर वहां के लोगों के साथ संवाद किया है और उनकी समस्याओं को सुनकर उनका समाधान निकालने का प्रयास किया है।
अगर आप उनके कार्यों में सहयोग देना चाहते हैं या उनके कार्यक्रमों में भाग लेना चाहते हैं, तो आप उनके संपर्क नंबर 9555744251 पर कॉल कर सकते हैं। उनकी टीम के सदस्य हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं। समाज के उत्थान में हर किसी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और हरिश्चंद्र जी इस दिशा में एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

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