धैकार समाज का संघर्ष: परंपरा और अधिकार की लड़ाई

परंपरा और अधिकार की लड़ाई

धैकार समाज का संघर्ष: परंपरा और अधिकार की लड़ाई

परंपरा और अधिकार की लड़ाई
परंपरा और अधिकार की लड़ाई

परंपरा और अधिकार की लड़ाई, भूख हड़ताल पर बैठे अनशनकारी कलंदर धैकार की हालत बिगड़ने के बाद उनका इलाज निजी चिकित्सक से करवाया जा रहा है। यह घटना एक बड़े सामाजिक संघर्ष की ओर इशारा करती है, जिसमें धैकार समाज अपनी मांगों को लेकर प्रशासन से जवाब की अपेक्षा कर रहा है। आज, भूख हड़ताल को पूरे 8 दिन हो चुके हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई चिकित्सा सुविधा या समर्थन नहीं मिला है।

परंपरा का टूटना: दाह-संस्कार की प्रक्रिया में धैकार समाज की भूमिका

धैकार समाज की परंपराएं हजारों साल पुरानी हैं, और इस समाज की विशिष्टता यह है कि इनके हाथों से शवों का अंतिम संस्कार होता है। 9 सितंबर 2024 से धैकार समाज ने विरोधस्वरूप यह निर्णय लिया है कि वे भोगांव श्मशान घाट पर शवों को अग्नि नहीं देंगे। यह विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं।

धैकार समाज का यह कदम एक गहरे सांस्कृतिक संकट का प्रतीक है, जहां उनकी परंपराओं और अधिकारों को संरक्षित करने की मांग की जा रही है। उनके बिना दाह-संस्कार की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है, और समाज का यह निर्णय हजारों साल पुरानी परंपराओं के टूटने का कारण बन रहा है।

अनशन पर बैठे कलंदर धैकार की तबियत बिगड़ी, फिलहाल स्थिति सामान्य

भूख हड़ताल पर बैठे कलंदर धैकार की तबियत आज दोपहर में अचानक बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें एंबुलेंस से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, कोन ब्लॉक चिल्ह ले जाया गया। चिकित्सकों की देखरेख में उनकी स्थिति फिलहाल सामान्य बताई जा रही है, लेकिन उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर चिंता बनी हुई है। यह घटना तब हुई जब भूख हड़ताल को 8 दिन पूरे हो चुके हैं, और अभी भी प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

समाजवादी प्रतिनिधिमंडल का समर्थन:परंपरा और अधिकार की लड़ाई

इस बीच, समाजवादी पार्टी के जिला प्रतिनिधिमंडल ने धैकार समाज के अनशनकारियों को अपना समर्थन दिया है। उनका यह समर्थन धैकार समाज की मांगों को और मजबूती प्रदान करता है, जो अपनी परंपराओं और अधिकारों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

समाजवादी प्रतिनिधिमंडल का यह कदम इस संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि इससे प्रशासन पर दबाव बढ़ेगा कि वे धैकार समाज की मांगों पर गौर करें और उचित कदम उठाएं।

स्थिति का वर्तमान परिदृश्य:परंपरा और अधिकार की लड़ाई

भूख हड़ताल के 8 दिनों बाद भी, प्रशासन की ओर से न तो कोई चिकित्सा सहायता दी गई है और न ही समाज की मांगों को लेकर कोई संवाद हुआ है। हालांकि, धैकार समाज अपने विरोध पर अडिग है और उनके द्वारा लिया गया यह निर्णय कि श्मशान घाट पर शवों को अग्नि नहीं दी जाएगी, अब तक कायम है।

प्रशासन की भूमिका और मौन समर्थन की कमी:परंपरा और अधिकार की लड़ाई

भूख हड़ताल के बावजूद प्रशासन की चुप्पी ने धैकार समाज के संघर्ष को और भी तीव्र कर दिया है। उनकी मांगें क्या हैं और क्यों उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। यह मुद्दा केवल सामाजिक या सांस्कृतिक नहीं है, बल्कि इसमें अधिकारों और इंसानियत का सवाल भी जुड़ा है।

परंपरा और अधिकार की लड़ाई
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FAQs (Frequently Asked Questions):परंपरा और अधिकार की लड़ाई

1. धैकार समाज की परंपरा क्या है?
धैकार समाज की प्रमुख परंपरा यह है कि उनके हाथों से शवों का दाह-संस्कार होता है। यह प्रक्रिया उनके समुदाय के लिए सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है, और इसके बिना अंतिम संस्कार अधूरा माना जाता है।

2. कलंदर धैकार की भूख हड़ताल किसलिए है?
कलंदर धैकार अपनी समुदाय की मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इन मांगों में उनकी परंपराओं और अधिकारों की सुरक्षा प्रमुख हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई समर्थन या कार्रवाई नहीं की जा रही है।

3. धैकार समाज का विरोध क्यों जारी है?
धैकार समाज ने विरोध स्वरूप यह निर्णय लिया है कि वे श्मशान घाट पर शवों को अग्नि नहीं देंगे। यह विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं।

4. प्रशासन का क्या रुख है?
अब तक प्रशासन की ओर से कोई चिकित्सा या अन्य सुविधा धैकार समाज के भूख हड़ताल कर रहे सदस्यों को नहीं दी गई है, जिससे उनकी हालत बिगड़ रही है।

5. इस विरोध का सांस्कृतिक महत्व क्या है?
यह विरोध केवल प्रशासनिक मांगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धैकार समाज की परंपराओं और उनकी पहचान की सुरक्षा से जुड़ा है। उनके बिना दाह-संस्कार की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है, और इस परंपरा का टूटना एक गहरे सामाजिक संकट का प्रतीक है।

धैकार समाज का यह संघर्ष केवल अधिकारों की लड़ाई नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने की एक पुरजोर कोशिश है। जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, यह विरोध जारी रहेगा।

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